"Bandhgala": a thread/poem
[Greetings to all on the National Handloom Day.]
"बंधगला"
- विक्रम ग्रेवाल
भीतर से यह नीव श्वेत
मेरी शान का परचम काला है।
निरंतर ड्राई क्लीन कर
नाज़ों से इसे संभाला है।
अतीत ने इसके बटन सींचे
वर्तमान ने धूळ को झाड़ा है।
भविष्य ने कंधे सँवारे
और अब बहुत कुछ बदलने वाला है।
सर से पाँव तक संघर्ष
इसको धारण करना भी एक कला है।
अपारदर्शी पर गौरव का दर्पण
ऐसा यह मेरा बंधगला है।
पसीने से हुआ पावन
इसमे ताप से तेज ढला है।
शुरुआत में गर्दन पे चुभन है परन्तु
कंठ भला तो सब भला है।
'शीलम परम भूषणम' के प्रतीक
इसकी सादगी ने दिखाए हैं।
काल में इसकी बसी रश्मि ने
कई अंधकार हटाए हैं।
शासन, प्रशासन, अनुशासन
इसके धागों में समाए हैं।
धागों ने नहीं, देश की आकाँक्षाओं ने
ऐसे हज़ारों बंधगले बनाए हैं।
Comments
अद्भुत सहयोग दिया है आपकी माता ने भी😊
I had a query regarding GS paper 1.
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